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Showing posts from July, 2018

नारी-शक्ति। ABHYUTKARSH। उत्कर्ष जैन।

एक सुन्दर, सलोनी प्यारी सी  लड़की की ये कहानी है। जिसकी शादी थी दो दिन में बदली उसकी जिन्दगानी है। जा रही थी वह बाज़ार कुछ अँधियारी गलियों से पीछे से कुछ इंसान आये शैतानों के मुखौटे में। पकड़ लिया उसको सबने जैसे कोई खिलौना हो। दबोच लिया ऐसे सबने जैसे कोई टुकड़ा हो। चिल्लाती रही, वह दुबकती रही शैतानों के आगे गिड़गिड़ाती रही। नहीं सुनी किसी ने उसकी अस्मत लूटली सबने जिसकी। उनकी हरक़त नापाक़ थी लड़की बेचारी बदहवास थी। मरा समझ के छोड़ गए वे जिस नारी को क्या पता था उन्हें पड़ेगी उन पर भारी वो। लड़की ने होश सम्भाला अंदर की दुर्गा को जगा डाला। दुर्गा की भाँति ही उसने महिषासुरों का वध कर डाला। नारी को तुम कम न समझना नारी गुण की खान है। नारी बिना जीवन में न राग है ना ज्ञान है। ABHYUTKARSH ~उत्कर्ष जैन।

प्रभु-भक्ति। ABHYUTKARSH। उत्कर्ष जैन।

मन मोहे राम बसे , मन तुझमें लगाऊँ कैसे  दिल मोहे गोपाल बसे , दिल तुझसे मिलाऊँ कैसे। नैनो में मेरे महावीर बसे , नैनो को तुझसे जोड़ूँ कैसे  कानों में मेरे बुद्धा बसे  ध्वनि तेरी मैं सुनू कैसे।  सपनों में मेरे ख़ुदा बसे , सपनें तेरे मैं देखू कैसे  आवाज़ में मेरे नानक बसे  आवाज़ तुझे मैं दूँ कैसे।  ध्यान में मेरे जीजस बसे , ध्यान तुझ पर लगाऊँ कैसे  आत्मा में मेरे शिव बसे  आत्मा को तुझसे मिलाऊँ  कैसे। ABHYUTKARSH ~ उत्कर्ष जैन।

मेरा बचपन। ABHYUTKARSH। उत्कर्ष जैन।

मेरा बचपन था कुछ ऐसा जो चला गया एकदम सहसा । सुबह-सुबह मम्मी का उठाना फिर दीदी के साथ स्कूल जाना । एक दिन उसका एक दिन मेरा

कौन है वो...? ABHYUTKARSH। उत्कर्ष जैन।

मेरा मन किसी को बुला रहा है, कौन है वो...? क्या कोई अनजानी राह  है , या फिर कहीं दिल की चाह है। कौन है वो... ? बारिश की बूँद है या सूरज की रोशनी है , चाँद की चाँदनी है या वनों की हरियाली है। कौन है वो... ? पहाड़ की ऊँचाई है या सागर की गहराई है , किसी अनजाने की दस्तक है या मेरे पैरो का कत्थक है। कौन है वो... ? हवा का तेज बहाव है या नदियों का शांत स्वभाव है , ठण्ड की शीतलता है या गर्मी की उष्णता है। आखिर कौन है वो... ? ABHYUTKARSH ~उत्कर्ष जैन।

शब्द। लोकेश शर्मा।

वक़्त बेवक़्त बोलते बहुत है, ये शब्द दबे राज खोलते बहुत है। सजते संवरते हैं साफ पन्नों पर, पढ़ते ही दिल मे उतरते बहुत है। कभी हँसाते है, कभी रुलाते है,

बात। इति गोव्स्वामी।

बहुत समय बाद तुझे देखा आज, दिल ने कहा ठहर जा थोड़ा, और कर ले थोड़ी उस से बात। दिमाग ने लगाया थप्पड़ तब दिल को, और याद आ गयी सारी वो पुरानी बात। कैसे क्या क्या हुआ था जब,

Judgement of Writings.लोकेश शर्मा।

कागज  को क्या पता कि, इस पर कब क्या लिखा है? लेकर सहारा इसका किसने, किसपे शब्दो से वार किया है। इस कलम को क्या पता कि,