लो चले हम अपने घर, लेके हाथ मे बस्ता भर... यादों की एक महफिल हैं, खट्टे मीठे जिसमें पल हैं... और है थोड़ा दुःख जाने का है थोड़ा सुख घर आने का... ये दोस्ती, समझ, दुनियादारी, ये जो कुछ सीखे सबक भारी... बांध के सबको गांठ लगा कर, बस्ते के पोटली साथ लगा कर... लो चले हम अपने घर, लेके हाथ मे बस्ता भर... यहां से तो फिलहाल चल देंगे, ना जाने घर कितना रुक लेंगे... जीवन की चुनौती फिर आनी है, पल मे ही घर से फिर रवानी है... किसका साथ आगे होना है, किसका साथ पीछे छूटना है... फिर मिले ना मिले कौन जाने, मिलने की फिर भी आस माने... लो चले हम अपने घर, लेके हाथ मे बस्ता भर... ~लोकेश शर्मा।
सुनो लडकियों... ये जो तुम हो, तो तोड़ लाते है चांद सितारों को भी, नही तो चांद सितारों तक हम आज भी जाते नही... सुख, दुख, प्यार का भाव, है सभी बात तुम्हीं से, नही तो इस दुनिया पर दिल की दुनिया बनाते कहीं... खुशी, मेले, त्यौहार और व्रत, है सभी बने तुम्हीं से, नही तो जिंदगी को जैसे तैसे हम जी पाते कभी... ये जो तुम हो, तो साथ है सदा किसी रूप में तुम्हारा नही तो हम इतनी हिम्मत आज भी लाते नहीं... तुम हो, हैं हवाओं में खुशबू और प्यार का एहसास, नदी, पहाड़, फूलों की खूबसूरती और सूरज प्रकाश, ये दुनिया इसके रंग और रौनक, है रोशन तुम्हीं से, नही तो ज्ञान ये हमको क्या आज भी आते कभी... ये जो तुम हो, तो मैं और मेरा धन्यवाद हैं तुमको, नही तो, ना सृष्टि रचना और अस्तित्व हमारा कहीं... ~लोकेश शर्मा।