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शब्द। लोकेश शर्मा।

वक़्त बेवक़्त बोलते बहुत है,
ये शब्द दबे राज खोलते बहुत है।
सजते संवरते हैं साफ पन्नों पर,
पढ़ते ही दिल मे उतरते बहुत है।
कभी हँसाते है, कभी रुलाते है,
हमें बीते किसी कल से मिलाते है।
किसी को सच किसी को झूठ,
न जाने कितनी बात बताते है।
बातों को बड़ी जल्द से जल्द,
ये इधर की उधर पहुंचाते है।
ख़ुशी, गुस्सा, हैरत या जज़्बा,
वो हर एक दबा ख़्याल बताते है।
किताब-कागजों में दबे होते है,
पर खुली हवा में घूमते बहुत है।
वक़्त बेवक़्त बोलते बहुत है,
ये शब्द दबे राज खोलते बहुत है।


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