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Showing posts from February, 2018

मेरा जन्मदिन।My birthday।

लोग तो तोहफा करते ही है, सोचा जन्मदिन है तो, खुद भी खुद को कुछ तोहफा कर दूं। क्या है ऐसा अनमोल, जो कर सकू खुद को,

इधर देखा उधर देखा। लोकेश शर्मा।

इधर देखा उधर देखा, जब देखा जिधर देखा, तुझे रोज़ अपने साथ और रोज़ नया ख्वाब देखा। तेरा मुस्कुराता चेहरा देखा, घनी झुल्फों का घेरा देखा,

धीरे धीरे समय निकलता जा रहा है, हाथ से रेत की तरह फिसलता जा रहा है।

धीरे धीरे समय निकलता जा रहा है, हाथ से रेत की तरह फिसलता जा रहा है, कोई न कोई याद बनाते जा रहा हूँ लिख-लिखकर इन्हें सजाते जा रहा हूँ। यादो का भी नाटक हो रहा है, कुछ यादें याद करके दुख हो रहा है, तो

CHAPTER-2 । प्रताप नगर की महाशिवरात्रि ।

ध्यान दें ~ यह कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है , इस कहानी में उपयोग किए गए नाम , जगह सभी का वास्तविकता से कोई संबंध नही हैं। 😜   CHAPTER-1 । प्रताप नगर की मकरसंक्रांति ।   CHAPTER-2 प्रताप नगर की महाशिवरात्रि। मकर संक्रांति का दिन तो हो गया था , पर जो होना था वो नही हुआ। शुभम पतंग काटने के चक्कर खुद की ही कटवा बैठा था , पतंग। अगले ही दिन , पिछले दिन का गुस्सा लेकर , शुभम फिर शाम को 4 बजे पतंग लेकर घर की छत पर पहुच गया , सोचा आज तो उसकी पतंग काट ही दूंगा। लेकिन किस्मत इतनी अच्छी कहा होती है , शुभम तो पहुँच गया छत पर लेकिन उनके घर की छत पर कोई भी नही था। न तो शिवांगनी थी और न ही उसके पापा थे। शुभम अकेला ही पतंग उड़ा रहा था , और जो कुछ पतंग दिख रही थी उन्हें काटने की कोशिश में लगा था। करीब 2 घंटे तक वो पतंग उड़ाता रहा … फिर जिस घड़ी का था इंतेज़ार , वो घड़ी भी आयी , छत पर उनके थे सूखे कपड़े , और उसे लेने उसकी चाहत ही आई। शिव