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नया साल हैं, नयी बात करते हैं। लोकेश शर्मा।

नया साल हैं , नयी बात करते हैं । जो बीता बीते साल उस से सीख कर , कठिन जिंदगी को थोड़ा आसान करते हैं , कि पुरानी हार तो अब हो गई पुरानी , नया मुकाम और नया प्रयास करते हैं । जो कुछ रह गई अनसुलझी पहेलियाँ , नये साल में उनका ये सुझाव करते हैं , कि ईर्ष्या मनमुटाव घमंड दर्द उदासी , सबको भूलाकर दिल में खुशी भरते हैं ।   बीती बातें , बीते मतभेद अब छोड़ो भी , अपने पराये सब साथ मिलकर रहते हैं , कि कुछ गलतियां आप मेरी भूल जाओ , कुछ गलतियां हम आपकी माफ करते हैं । नया साल हैं ,  नयी बात करते हैं । ~लोकेश शर्मा।

अब जो साथ तू नहीं तो फिर मैं नहीं। लोकेश शर्मा।

  तेरा बीच राह मुझे यूँ छोड़ जाना तेरे लिए खेल है तो फिर खेल वहीं... जितना प्यार किया तेरे लिए शायद कम रहा मेरी तू रही नहीं तो फिर ना सही... मैं तो पूरा का पूरा तेरा ही सिर्फ तेरा ही था तुझे काफी नहीं तो फिर ना सही... तुने तेरी दुनिया एक बार फिर से बदली है वो अब मैं नहीं तो फिर कोई और सही... मेरी दुनिया का तो तुझे पता ही है ना अब जो साथ तू नहीं तो फिर मैं नहीं... ~लोकेश शर्मा ।

एक पंछी अपनी राह तकता। लोकेश शर्मा।

एक पंछी अपनी राह तकता, आ पहुँचा कहीं दूर भटकता। अपनी मंजिल अपना रस्ता, एक ही राग को रटता रटता। पंखों को फैला कर अपनी, आज़ादी में उड़ता फिरता। पल भर के आनंद लालच में, अपना जीवन बर्बाद करता। झूठे थे सब सपने उसके, आनंद था सब झूठा उसका। आवारगी में अब क्या पाया, जो अपनो को था गलत करता। संगी साथी सब अपने छूटे, परायों के साथ चलता चलता। अब जब पराये छोड़ गए, अपनो को बस  है  याद करता। अब पीछे न कोई है उसके, न आगे है कोई और रस्ता। जाए तो वो जाए कहाँ अब, मन मे न अब कुछ समझता। एक पंछी अपनी राह तकता, आ पहुँचा कहीं दूर भटकता। अपनी मंजिल अपना रस्ता, एक ही राग को रटता रटता। ~लोकेश शर्मा।
अभी तुम को मेरी ज़रूरत नही बहोत चाहने वाले मिल जाएँगे अभी रूप का एक सागर हो तुम कमल जीतने चाहोगी खिल जाएँगे... दरपन तुम्हे जब डराने लगे जवानी भी दामन छुड़ाने लगे तब तुम मेरे पास आना प्रिय मेरा सर झुका है झुका ही रहेगा, तुम्हारे लिए... कोई शर्त होती नहीं प्यार में मगर प्यार शर्तों पे तुम ने किया नज़र में सितारे जो चमके ज़रा भुझाने लगी आरती का दिया जब अपनी नज़र में ही गिरने लगो अंधेरो में अपने ही घिरने लगो तब तुम मेरे पास आना प्रिय ये दीपक जला है जला ही रहेगा तुम्हारे लिए... कोई जब तुम्हारा हृदय तोड़ दे तड़पता हुआ जब कोई छोड़ दे... तब तुम मेरे पास आना प्रिय मेरा दर खुला है खुला ही रहेगा, तुम्हारे लिए...

क्यूँ मान लूँ मैं। लोकेश शर्मा।

क्यूँ मान लूँ मैं। हमारे दरमियाँ कभी , कि कुछ था ही नही , हमने एक दूसरे को , कि कभी चाहा ही नही। तुम भी वाक़िफ़ हो , मैं भी वाक़िफ़ हूँ , ये रिश्ता सच है जिसे , कि तू अब मानता ही नही। प्यार तो था और है भी , मुझे तुमसे , तुम्हें मुझसे। तो क्यूँ झूठ बोलूँ मैं , कि  हम  अब कुछ भी नही। जो तुम्हें पसंद नही , वो बात करेंगें   भी नही। पर झुठला दूँ प्यार को , ऐसा तो हम करेंगें ही नही। टूट कर चाहा हैं हमने , दोनो ही बिखरने लगे है। तो क्यूँ मान लूँ मैं , कि हम अब साथ ही नही। तुम चाहे कह दो हमे , कि तुम अब कुछ भी नही। तो क्यूँ मान लूँ मैं , कि जो कहा वो झूठ ही नही। ~ लोकेश शर्मा।

न फिर कभी। लोकेश शर्मा।

हाँ मेरी कुछ बाते है ऐसी, जो शायद तुम्हे अच्छी न लगे। पर आज न कह सका, तो न कह सकूँगा फिर कभी। तुम जा तो रही हो छोड़कर, रोकूंगा नही तुम्हें अब। पर वादा है मेरा तुमसे, अब न मिलूंगा तुम्हें फिर कभी। चाहे दुख में ही दिन गुजरे, या फिर रो कर कटे रात। न होगा तुम्हारा इंतज़ार, न करूँगा अभिनंदन फिर कभी। जब कभी अकेला लगेगा, तब याद जरूर आएगी। पर साथ देने तुम्हारे, अब न आऊँगा मैं फिर कभी। ~लोकेश शर्मा।