Skip to main content

नया साल हैं, नयी बात करते हैं। लोकेश शर्मा।


नया साल हैं, नयी बात करते हैं


जो बीता बीते साल उस से सीख कर,

कठिन जिंदगी को थोड़ा आसान करते हैं,

कि पुरानी हार तो अब हो गई पुरानी,

नया मुकाम और नया प्रयास करते हैं


जो कुछ रह गई अनसुलझी पहेलियाँ,

नये साल में उनका ये सुझाव करते हैं,

कि ईर्ष्या मनमुटाव घमंड दर्द उदासी,

सबको भूलाकर दिल में खुशी भरते हैं

 

बीती बातें, बीते मतभेद अब छोड़ो भी,

अपने पराये सब साथ मिलकर रहते हैं,

कि कुछ गलतियां आप मेरी भूल जाओ,

कुछ गलतियां हम आपकी माफ करते हैं


नया साल हैंनयी बात करते हैं


~लोकेश शर्मा।

Comments

Popular posts from this blog

मैं वहीं पर खड़ा तुमको मिल जाऊँगा। डा. विष्णु सक्सेना।

मैं वहीं पर खड़ा तुमको मिल जाऊँगा जिस जगह जाओगे तुम मुझे छोड़ कर। अश्क पी लूँगा और ग़म उठा लूँगा मैं सारी यादों को सो जाऊंगा ओढ़ कर ।। जब भी बारिश की बूंदें भिगोयें तुम्हें सोच लेना की मैं रो रहा हूँ कहीं। जब भी हो जाओ बेचैन ये मानना खोल कर आँख में सो रहा हूँ कहीं। टूट कर कोई केसे बिखरता यहाँ देख लेना कोई आइना तोड़ कर। मैं वहीं पर खड़ा तुमको....... रास्ते मे कोई तुमको पत्थर मिले पूछना कैसे जिन्दा रहे आज तक। वो कहेगा ज़माने ने दी ठोकरें जाने कितने ही ताने सहे आज तक। भूल पाता नहीं उम्रभर दर्द जब कोई जाता है अपनो से मुंह मोड़ कर। मैं वहीं पर खड़ा तुमको...... मैं तो जब जब नदी के किनारे गया मेरा लहरों ने तन तर बतर कर दिया। पार हो जाऊँगा पूरी उम्मीद थी उठती लहरों ने पर मन में डर भर दिया। रेत पर बेठ कर जो बनाया था घर आ गया हूँ उसे आज फिर तोड़ कर। मैं वहीं पर खड़ा तुमको....... ~ डा. विष्णु सक्सेना ।

पीयूष मिश्रा की कुछ कविताएं। पीयूष मिश्रा।

Includes :- One Night Stand... क्या नखरा है यार... कुछ इश्क किया कुछ काम किया। कौन किसको क्या पता... अरे, जाना कहां है...? °One Night Stand... खत्म हो चुकी है जान, रात ये करार की, वो देख रोशनी ने इल्तिज़ा ये बार बार की। जो रात थी तो बात थी, जो रात ही चली गयी, तो बात भी वो रात ही के साथ ही चली गयी। तलाश भी नही रही, सवेरे मकाम की, अंधेरे के निशान की, अंधेरे के गुमान की। याद है तो बस मुझे, वो होंठ की चुभन तेरी, याद है तो बस मुझे, वो सांस की छुअन तेरी। वो सिसकियों के दौर की महक ये बची हुई, वो और, और, और की, देहक ये बची हुई। ये ठीक ही हुआ

धीरे धीरे समय निकलता जा रहा है, हाथ से रेत की तरह फिसलता जा रहा है।

धीरे धीरे समय निकलता जा रहा है, हाथ से रेत की तरह फिसलता जा रहा है, कोई न कोई याद बनाते जा रहा हूँ लिख-लिखकर इन्हें सजाते जा रहा हूँ। यादो का भी नाटक हो रहा है, कुछ यादें याद करके दुख हो रहा है, तो