क्यूँ मान लूँ मैं।
हमारे दरमियाँ कभी,
कि कुछ था ही नही,
हमने एक दूसरे को,
कि कभी चाहा ही नही।
तुम भी वाक़िफ़ हो,
मैं भी वाक़िफ़ हूँ,
ये रिश्ता सच है जिसे,
कि तू अब मानता ही नही।
प्यार तो था और है भी,
मुझे तुमसे, तुम्हें
मुझसे।
तो क्यूँ झूठ बोलूँ मैं,
कि हम अब कुछ भी नही।
जो तुम्हें पसंद नही,
वो बात करेंगें भी नही।
पर झुठला दूँ प्यार को,
ऐसा तो हम करेंगें ही नही।
टूट कर चाहा हैं हमने,
दोनो ही बिखरने लगे है।
तो क्यूँ मान लूँ मैं,
कि हम अब साथ ही नही।
तुम चाहे कह दो हमे,
कि तुम अब कुछ भी नही।
तो क्यूँ मान लूँ मैं,
कि जो कहा वो झूठ ही नही।
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