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एक पंछी अपनी राह तकता। लोकेश शर्मा।


एक पंछी अपनी राह तकता,

आ पहुँचा कहीं दूर भटकता।

अपनी मंजिल अपना रस्ता,

एक ही राग को रटता रटता।


पंखों को फैला कर अपनी,

आज़ादी में उड़ता फिरता।

पल भर के आनंद लालच में,

अपना जीवन बर्बाद करता।


झूठे थे सब सपने उसके,

आनंद था सब झूठा उसका।

आवारगी में अब क्या पाया,

जो अपनो को था गलत करता।


संगी साथी सब अपने छूटे,

परायों के साथ चलता चलता।

अब जब पराये छोड़ गए,

अपनो को बस है याद करता।


अब पीछे न कोई है उसके,

न आगे है कोई और रस्ता।

जाए तो वो जाए कहाँ अब,

मन मे न अब कुछ समझता।


एक पंछी अपनी राह तकता,

आ पहुँचा कहीं दूर भटकता।

अपनी मंजिल अपना रस्ता,

एक ही राग को रटता रटता।


~लोकेश शर्मा।

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