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मेरी नींदें उड़ा कर, वो चैन से सो गई। लोकेश शर्मा।

मेरी नींदें उड़ा कर , वो चैन से सो गई। सब कुछ तो किया था , न जाने कहाँ कमी रह गई। अब तो दिन-रात , सब एक-सी हो गई । रात को बारिश की बूँदें , दिन   में उनकी नमी रह गई। ~लोकेश शर्मा।

तुझे पता है, तू मेरी जान है। लोकेश शर्मा।

तुझे पता है, तू मेरी जान है, तुझे दुखी कैसे रख सकता हूँ। तू अगर खुश रह ले तो मैं, बेजान भी खुश रह सकता हूँ। ~लोकेश शर्मा।

मगर तुझे तो भुला भी नही सकता। लोकेश शर्मा।

खुश रहने की बहुत इच्छा है, मगर खुश रह भी नही सकता। जोर से रोने का मन कर रहा है, मगर खुल कर रो भी नही सकता। तुझ पर बहुत गुस्सा आ रहा है, मगर गुस्सा कर भी नही सकता। बहुत कुछ मुझे बताना है तुझे, मगर अब बता भी नही सकता। मेरा सब कुछ दूर चला गया है, मगर मैं कुछ कर भी नही सकता। मिलने को तो कोई और मिल जाये, मगर तुझे तो भुला भी नही सकता। ~लोकेश शर्मा। Views:

पीयूष मिश्रा की कुछ कविताएं। पीयूष मिश्रा।

Includes :- One Night Stand... क्या नखरा है यार... कुछ इश्क किया कुछ काम किया। कौन किसको क्या पता... अरे, जाना कहां है...? °One Night Stand... खत्म हो चुकी है जान, रात ये करार की, वो देख रोशनी ने इल्तिज़ा ये बार बार की। जो रात थी तो बात थी, जो रात ही चली गयी, तो बात भी वो रात ही के साथ ही चली गयी। तलाश भी नही रही, सवेरे मकाम की, अंधेरे के निशान की, अंधेरे के गुमान की। याद है तो बस मुझे, वो होंठ की चुभन तेरी, याद है तो बस मुझे, वो सांस की छुअन तेरी। वो सिसकियों के दौर की महक ये बची हुई, वो और, और, और की, देहक ये बची हुई। ये ठीक ही हुआ...

वो तुम नही थी। लोकेश शर्मा।

वो लड़की मुझे दिखी, जो किसी से बात कर रही थी। वो ही काला टॉप और, हल्के ग्रे कलर की जीन्स पहनी थी। बाल थे उसके खुले खुले, मेरी तरफ पीठ करके खड़ी थी। फिर बात खत्म कर वो, उस जगह से आगे चल पड़ी थी। काला छोटा बैग लटका था, और चलने की स्टाइल भी वही थी। ---1--- मैं भी दौड़ने लगा उसके पीछे, मिलूंगा आज उस से, खुशी बड़ी थी। मेरी उत्साहित ज़बान ने उसे, दौड़ते-दौड़ते पीछे आवाज भी दी थी। सुना नही होगा शायद उसने, वो आवाज सुन पीछे नही मुड़ी थी। मैंने हाथ उसका फिर पकड़ा, रोका उसे, वो मेरे सामने खड़ी थी। मैं चेहरा देख चौक गया था, जिसे तुम था समझा, वो तुम नही थी। ---2--- उसने देखा मुझे और फिर, 'क्या हुआ बोलिए' वो सवाल पूछी थी। कोई और समझ लिया आपको, माफ करना मुझे, जो गलती हुई थी। ये कहकर बस देखता रहा, सब कुछ वैसा ही, पर वो तुम नही थी। मिलना था तुमसे दुबारा, ये ख्वाइश न जाने क्यूँ अधूरी थी। फिर मन ही मन में रोता रहा, आखिर क्यों वो जो थी, वो तुम नही थी। 😔😔😔 ---3--- ~लोकेश शर्मा। Thank you Ram Kumar Prajapati, Vandana Sharm...

क्या तुम्हे है ये याद? । लोकेश शर्मा ।

°क्या तुम्हे है ये याद? वो देर रात, फ़ोन पर बात, यूँ मुझे बुलाना तेरे पास। हाथो में हाथ, साथ साथ, टहलना फिर सुनसान रात। और वो रात तेरी, हर हसीन रात, हर घड़ी, पल बस तेरा साथ। आंखों से आंखे, हाथो से हाथ, यूँ पेंच लड़ाते हम करते बात। फिर चिपक जाना एक दूजे के साथ, फिर क्या होंठ और क्या गाल। गले मिल, सुनना दिल का हाल, बस महसूस करना, रहना शांत। पर अब देर रात, फ़ोन पर बात, यूँ न आ पाना अब तेरे पास, हाथो में न अब हाथ साथ, अकेले अकेले अब सुनसान रात। ~लोकेश शर्मा। views:

मुझे आज भी यकीन नही होता। लोकेश शर्मा।

° मुझे आज भी यकीन नहीं होता... कि कैसे कोई जाने किस पल , किसी का दीवाना बन जाता है। भूलकर असली दुनिया सारी , अलग ही दुनिया में खो जाता है। कि कैसे कोई कल का अनजान , आज किसी की जान हो जाता है। खुद की जान से भी बढ़कर , उस जान से प्यार हो जाता है। मुझे आज भी यकीन नहीं होता... कि कैसे कोई महफ़िल में भी , सब में अकेला कर जाता है। सब कुछ पास होते हुए भी , कमी का अहसास हो जाता है। कि कैसे कोई एक उसका , सब कुछ उसका बन जाता है। अपनो से भी रिश्ता सिर्फ वो , उस एक के लिए तोड़ जाता है। मुझे आज भी यकीन नहीं होता... कि कैसे कोई जीवन अपना , सिर्फ उस एक नाम कर जाता है। एक ही तो जीवन है , और उसे भी वो बर्बाद कर जाता है। कि कैसे कोई प्यार के घाट यूँ , बंद आंखों से उतर जाता है। न वो उसमें डूब पाता है , न उभर कर कभी वापस आता है। मुझे आज भी यकीन नहीं होता... ~ लोकेश शर्मा।