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CHAPTER-2 । प्रताप नगर की महाशिवरात्रि ।

ध्यान दें~ यह कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है, इस कहानी में उपयोग किए गए नाम, जगह सभी का वास्तविकता से कोई संबंध नही हैं।😜

 

CHAPTER-1 प्रताप नगर की मकरसंक्रांति । 


CHAPTER-2


प्रताप नगर की महाशिवरात्रि।

मकर संक्रांति का दिन तो हो गया था, पर जो होना था वो नही हुआ। शुभम पतंग काटने के चक्कर खुद की ही कटवा बैठा था, पतंग। अगले ही दिन, पिछले दिन का गुस्सा लेकर, शुभम फिर शाम को 4 बजे पतंग लेकर घर की छत पर पहुच गया, सोचा आज तो उसकी पतंग काट ही दूंगा। लेकिन किस्मत इतनी अच्छी कहा होती है, शुभम तो पहुँच गया छत पर लेकिन उनके घर की छत पर कोई भी नही था। तो शिवांगनी थी और ही उसके पापा थे। शुभम अकेला ही पतंग उड़ा रहा था, और जो कुछ पतंग दिख रही थी उन्हें काटने की कोशिश में लगा था। करीब 2 घंटे तक वो पतंग उड़ाता रहा

फिर जिस घड़ी का था इंतेज़ार,

वो घड़ी भी आयी,

छत पर उनके थे सूखे कपड़े,

और उसे लेने उसकी चाहत ही आई।

शिवांगनी ने शुभम को देखा, फिर आसमान में उसकी उडती हुई पतंग को भी देखा। चेहरे पर हल्की सी मुस्कान लिए, और हाथ मे कपड़े लिए फिर वो नीचे चली गयी। फिर शुभम भी नीचे गया। नीचे हम सब मयंक, शिवांग, विकास, हरदीप एक ही कमरे में बैठे थे। जैसे ही शुभम आया मयंक ने पूछा 'तो भाई काट दी या कटवा ली?' 'अरे, नही यार! वो लोग आज छत पर पतंग नही उड़ा रहे, लेकिन दर्शन हो गए शिवांगनी के, कपड़े लेने आई थी वो छत पर', शुभम ने जवाब दिया। फिर कुछ दिन ऐसे ही निकलते गए। शुभम रोज़ एक बार छत पर यह सोचकर जरूर जाता था की क्या पता दर्शन हो जाए और कुछ बात आगे बढ़ जाये?

फरवरी शुरू हुई और वैलेंटाइन का सप्ताह भी शुरू हुआ। हमने मजाक करते हुए शुभम से कहा 'देख ले भाई, या तो 14 फरवरी तक उसे अपने प्यार के बारे में बता दे, नही तो हमारे साथ चल, हम सब मिलकर बजरंग दल में शामिल हो जाते है, ऐसे आशिक़ की तरह कब तक उसके ख्यालो में डूबा रहेगा।'

13 फरवरी थी। सुबह जल्दी किसी ने मेरे कमरे का दरवाजा खटखटाया। मैने दरवाज़ा खोला और देखा तो सामने शुभम था। मै सोच में पड़ गया कि जो लड़का कभी 12 बजे से पहले नही उठता, कॉलेज जाने के लिए भी, वो आज सुबह 7 बजे नहाकर तैयार होकर मेरे सामने खड़ा था। मैंने पूछा, 'क्या हुआ? आज इतनी जल्दी कैसे तैयार हो गया? कहा जा रहा है?' उसने कहा, 'अरे! आज महाशिवरात्रि है ना, तो सोच रहा था मंदिर जाने के लिए, तू तो जाता ही है हर साल, तो सोचा तेरे साथ इस बार मैं भी चलता हूं।' मैंने कहा, 'ठीक है, मैं बस तैयार हो ही रहा हूँ, फिर चलते है साथ मे।' उसने कहा, 'ठीक है।'

जब मैं तैयार हो गया, मैंने कहा 'चल चलते है', तो उसने कहा, 'नही रूक अभी थोड़ी देर, जब मैं बोलू  तब चलेंगे।' उसकी नज़र घर के बाहर सामने शिवांगनी के घर पर थी। मैंने पूछा, 'तूने आज व्रत रखा है क्या? या फिर शिवांगनी को पाने के लिए भगवान शिव को खुश करने में लगा है?', 'नही नही ऐसा कुछ नही है' बोलते हुए शुभम ने बोला, 'चल अब चलते है।' मैने देखा शिवांगनी और उसकी मम्मी दोनों पूजा की थाली लिए हुए मंदिर के लिए घर से उस समय बाहर निकली थी। हम भी ठीक उनके पीछे-पीछे निकल गए। मैंने शुभम से पूछा, 'एक बात बता तुझे कैसे पता चला कि वो भी अपने मम्मी के साथ इसी समय मंदिर के लिए निकलेगी और तू उसका पीछा करने के लिए मंदिर जा रहा है?' उसने कहा, 'बस पता था, तू चलता जा बस अभी।' और फिर हम पहुच गए भगवान शिव के मंदिर में। शिवांगनी ठीक हमारे आगे ही थी। जो लड़के उस दिन शुभम की पतंग कटने के बाद शुभम पर हस रहे थे, वो भी मंदिर आये थे और वो ठीक हमारे पीछे थे। शिवांगनी हाथ जोड़कर आंख बंद करके प्रार्थना कर रही थी तभी शुभम भी उसके बिल्कुल पास पहुच गया।

पहले इधर देखा,

फिर उधर देखा,

फिर हिम्मत करके

शुभम ने शिवांगनी की और देखा।

शिवांगनी ने भी उसकी तरफ देखा, शुभम ने हल्की-सी मुस्कुराहट दी और आगे हाथ बढ़ाते हुए कहा 'हेलो' पर शिवांगनी ने कोई जवाब नही दिया और अपनी आंखें छुपाते हुए, वो मंदिर में परिक्रमा करने चली गई। शुभम ने पीछे से आवाज़ भी दी 'सुनो! हेलो?', ये सब शिवांगनी की मम्मी ने तो नही देखा, उनका ध्यान कहीं और था वो भी मंदिर के चारो तरफ परिक्रमा कर रही थी, पर मंदिर का पुजारी शुभम को देख रहा था। उसे लगा शुभम शिवांगनी को परेशान कर रहा है। पुजारी शुभम के पास आया और प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा मानो जैसे आशीर्वाद दे रहा हो और फिर कहा, 'बेटा कर लिए भगवान के दर्शन?' शुभम ने कहा, 'हा पंडित जी कर लिए।', तो फिर अब बाहर चलो मंदिर से और ये कहते हुए पंडित जी ने हमको खड़ा कर दिया मंदिर के बाहर। उन लड़कों ने ये सब देखा, जो हमारे पीछे थे और उन्हें एक बार फिर शुभम पर हँसने का मौका मिल गया।

शिवांगनी और उसकी मम्मी मंदिर के बाहर आए। हम वहीं एक तरफ खड़े हुए थे, शिवांगनी और उसकी मम्मी दोनों हमारे सामने से निकल गए। शुभम को इंतेज़ार था तो बस इसी का की शिवांगनी उसको पलट कर देखती है या नही? उसे लगा शिवांगनी जाते समय एक नज़र तो उसकी तरफ देखेगी जरूर। लेकिन ऐसा कुछ नही हुआ। मैंने फिर मजाक में कहा, 'उसने तो मुडकर देखा नही, अब बता चले बजरंग दल में शामिल होने।' और यहीं बाते करते हुए हम घर पहुँच गए।

कुछ समय बाद एक लड़की अपनी स्कूटी पर आई और ठीक शिवांगनी के घर के सामने गाड़ी खड़ी की, फिर शिवांगनी को बुलाने लगी। हम सब लोग उस समय छत पर ही थे, शिवजी भगवान के गाने चला रखे थे और धूप में बैठे हुए थे, जिंदगी का मजा ले रहे थे। शिवांगनी अपने घर के बाहर आई और उस लड़की को लेकर अपने घर के वापस अंदर चली गयी। हमे छत से उस लड़की का चेहरा उस समय तो नही दिखा, लेकिन कुछ समय बाद जब वो और शिवांगनी घर के बाहर निकले तब उस लड़की का चेहरा दिखाई दिया और हम चौक गए, हम तो उस लड़की को जानते थे। मैने आश्चर्य से शुभम की और देखा और शुभम ने मेरी तरफ देखा। शुभम को अब आगे का रास्ता साफ दिखाई देने लगा। फिर क्या था, मैंने शुभम को कहा, 'लगा सत्यम को कॉल, बुलाओ उसे शाम को खाने के लिए घर पर।' क्योंकि वो लड़की कोई और नही, छवि थी।

~लोकेश शर्मा।

Comments

  1. Wah... Gjb... Kya twist diya h khani m... Shubham tum संघर्ष kro, hum tumhare sath h... Bjrang dal m shaamil hone k liye to poori jindgi pdi h... 😂😂😂😂

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  2. killed two birds with one stone bhai...
    keep up the good work
    shubham nice going and satyam best of luck for the next part...

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