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CHAPTER-1 । प्रताप नगर की मकर संक्रांति ।

ध्यान दें~ यह कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है तथा इसका किसी भी व्यक्ति, जगह से कोई संबंध नही है। 😜

CHAPTER-1

 

प्रताप नगर की मकरसंक्रांति।

शाम का समय था। मै, सत्यम, शुभम,और विकास पहुच गए घर की छत पर। 3 साल लगातार कॉलेज होस्टल में रहने के बाद अब हम कॉलेज के आखिरी साल प्रताप नगर जयपुर में एक किराये के घर में रहते थे। मकर संक्रांति का दिन था तो सभी लोग उस दिन अपने अपने घरों की छत पर थे और पतंग-बाज़ी का आनंद ले रहे थे। पूरा आसमान पतंगों से भरा हुआ था, बहुत से लोग छत पर स्पीकर लगा कर गाने भी बजा रहे थे। हम भी पतंग लेकर आये थे और शुभम में आत्मविश्वास तो इतना था कि एक ही पतंग खरीद कर लाया था। शुभम ने बोला था एक ही बहुत है, मेरे लिए सबकी पतंग इस एक से ही काट दूंगा और जब अपनी पतंग कट जाएगी तो इसके बाद उस दिन पतंग नही उड़ाऊंगा। उसे अपने मांझे पर और खुद पर बहुत भरोसा था।

फिर पतंग उड़ाना शुरू किया, एक एक करके शुभम पतंग काटने में लग गया। करीब 17 पतंग काट दी थी शुभम ने। हमे लगा की अब तो भाई की पतंग कोई नही काट सकता ये तो स्टार है, तभी एक पतंग शुभम की पतंग के ठीक पास उड़ने लगी, देखा तो पता चला कि पतंग तो शिवांगनी उड़ा रही थी जो कि ठीक हमारे घर के सामने रहती थी। शुभम को शिवांगनी बहुत अच्छी लगती थी, वो उसे अपना दोस्त भी बनाना चाहता था। वो छत पर पतंग उड़ा रही थी और उसका पूरा परिवार उस वक़्त छत पर उसके साथ ही था। उसके पापा ने उसे पतंग उड़ा कर दी थी और वो उसके साथ ही खड़े हुए थे। मैंने कहा 'शुभम ज्यादा सोच मत, अगर उसकी पतंग नही काटी तो फिर क्या मजा? काट दे उसकी पतंग भी।' शुभम ने कहा पहले उसकी पतंग को थोड़ा और ऊपर आने दे फिर काटूंगा। बस अब पेंच होने ही वाला था उसकी पतंग का और हमारी पतंग का। शुभम ने पेंच ले लिया और हम लोग शिवांगनी को देख रहे थे कि वो कैसे अपनी पतंग बचाती है। तभी उसके पापा ने शिवांगनी के हाथ से मांझा लिया, उसे थोड़ा खींचा और छोड़ा, फिर वापस शिवांगनी को दे दिया। ठीक उसी वक़्त शुभम बोला 'भाई अपनी पतंग गयी।'

हम चौक गए, हमने देखा शुभम के हाथ मे था तो सिर्फ मांझा, जिस पर शुभम को बहुत भरोसा था। शुभम तो अपनी आंखों से देखता ही रह गया कि ये क्या हो गया, जब अपना प्रभाव दिखाना था, तब ही पतंग कट गई। शिवांगनी के पापा ने हमारी पतंग काट दी वो भी बहुत आसानी से और फिर से पतंग शिवांगनी के हाथ मे दे दी। बाद में अंकल पीछे हमारी तरफ मुँह करके हम लोगो को देख रहे थे, मानो जैसे मन ही मन मे कह रहे हो 'बेटा क्या सोच कर आये थे, की लड़की है तो पतंग काट लो उसकी?'

उनके घर के पास की छत पर कुछ लड़के थे जिनकी 2 पतंगे हम काट चुके थे, वो भी पहले तो आश्चर्यचकित हो गए कि अंकल ने हमारी पतंग काट दी, अंकल तो इसमें माहिर निकले, फिर वो भी हंसने लगे। अब क्या करे! शुभम ने बोला था दूसरी पतंग नही उड़ाएगा तो उसने उड़ाई भी नही।

हम बस वही छत पर आसमान में उड़ती पतंगों को देखने लगे। जब अंधेरा हुआ तो उडती लालटेनों से आसमान जगमगा रहा था। बहुत ही सुंदर नज़ारा था वो। तो कुछ ऐसा रहा हमारा मकर संक्रांति का त्यौहार। अब देखते है शुभम का फिर से शिवांगनी के साथ कोई पेंच होता है या नही!


~लोकेश शर्मा।

CHAPTER-2  प्रताप नगर की महाशिवरात्रि 

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