धीरे धीरे समय निकलता जा रहा है,
हाथ से रेत की तरह फिसलता जा रहा है,
कोई न कोई याद बनाते जा रहा हूँ
लिख-लिखकर इन्हें सजाते जा रहा हूँ।
यादो का भी नाटक हो रहा है,
कुछ के सहारे जीवन व्यतीत हो रहा है।
कोई खास फर्क नही पड़ रहा है,
की जीवन मे मेरे कौन आ रहा है, और
कोई अगर मुझसे दूर जा भी रहा है।
हमेशा ऐसा ही होता रहा है,
हर इंसान बदलता जा रहा है, हाँ
समय के अनुसार ढलता जा रहा है।
समय का भी क्या जा रहा है,
हर समय निकलता जा रहा है,
हाथ से रेत की तरह फिसलता जा रहा है।।
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