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मुझे मेरी जिंदगी हर रोज चाहिए। लोकेश शर्मा।



(माना कीं हम रोज नहीं मिलते, लेकिन जब भी मिलते हैं, मुझे मेरी जिंदगी मिल जाती हैं...)

मुझे मेरी जिंदगी हर रोज चाहिए... 

ये मेरी तरफ उठती निगाहें,
जैसे सुबह की हो पहली किरण...
ये हसना तुम्हारा, ये मीठी बातें,
जैसे पहाड़ो से झरनों की हो जल तरंग...
कभी चुप हो जाना और शर्मा जाना,
गालो पर शाम की लालिमा आना...
यूँ तेरा जुल्फों को बिखरा देना,
दिन को पलभर में रात बना देना...
ये धूप, ये छाव और ये रंगीन बहार,
कुछ और नहीं है, सब है तेरे मिजाज़...
ये रात, ये सूरज, ये चाँद और चाँदनी,
कुछ और नहीं है, सब है तेरे प्रभाग...
ये हवा, ये बारिश, फूल और खुशबु,
क्या कुछ नहीं है जो तुझमें समाया...
ये मौसम, ये धरती, आसमाँ खूब नहीं, 
कि रब ने तुझे क्या बखूब है बनाया...
सबके पास दुनिया खूब है, सही है,
पर मुझे मेरी दुनिया बखूब चाहिए...
मेरा तुम्हारा साथ ये हीं है, वहीं हैं,
जो हर रोज हर घड़ी हर पल चाहिए...
इस दुनिया मे अस्तित्व नहीं है मेरा, 
जीने को तो यूहीं जिए जा रहा हूँ मैं...
मेरी दुनिया मेरी जिंदगी सब तुम हो, 
सच तुमसे मिलने को मरा जा रहा हूँ मैं...
मैं रेगिस्तान में भटकता हूँ, मृत हूँ,
जल नहीं मुझे अमृत की बूंदे चाहिए... 
हम रोज नहीं मिल सकते, जानता हूँ,
पर मुझे मेरी जिंदगी तो हर रोज चाहिए...



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