"पूछो मुझसे दोस्ती की कीमत" रिश्तों में सबसे ऊपर, दिल से दिल का रिश्ता है, भगवान भी सब हार जाए, वो अनमोल तोहफ़ा है। चमक जिसकी ख़राब ना हो, वो नायाब हीरा है, ख़त्म होते से ना ख़त्म हो, वो जीवन का निशां है। जिसके नहीं हैं दोस्त, पूछो उससे दोस्ती की कीमत, होते क्या हैं दोस्त, हाँ पूछो मुझसे दोस्ती की कीमत। दोस्ती जो ग़मों में भी मुस्कुराहट की ख़ान है, तेरा सही-ग़लत सब जानकर भी तेरे साथ है। वहीं है जिसमें ना कोई तोल और हिसाब है, जिसे जब जरूरत पड़ी, उसपे खुलकर वार है। जिसके नहीं हैं दोस्त, पूछो उससे दोस्ती की कीमत, होते क्या हैं दोस्त, हाँ पूछो मुझसे दोस्ती की कीमत। जीवन का पाठ पढ़ाए, हर मोड़ पर साथ निभाए, तेरी हार सर पर उठाए, तेरी जीत पर ताली बजाए। कभी जो हम टूटकर बिखरे, और अकेले रह जाए, शाम हो, यारों की महफ़िल हो, और सब भूल जाए। जिसके नहीं हैं दोस्त, पूछो उससे दोस्ती की कीमत, होते क्या हैं दोस्त, हाँ पूछो मुझसे दोस्ती की कीमत। देखो उसे जो यहाँ अकेला खड़ा है, बिखरा पड़ा है, ख़ामोश निगाहों से जिसने अपना चेहरा बुझते देखा है। जो आस लगाए बैठा है, अब यादों में जीता रहता है, वो ख़ास ...
You can download this poem for free by just clicking the download link below the poem. धीरे-धीरे ढलती धूप का पंख पसारना है, सांझ के आँचल में सूरज का सिमट जाना है। पेड की टहनी पे चिड़ियों की आख़िरी पुकार है, जैसे दिन भर की कहानियाँ उनके पास बेशुमार है। बचपन की गलियों से फिर वो हवा आती है, जिसमें आम की मिठास और मिट्टी की दवा है। छुट्टियों के पहले दिन सी वो ख़ुशबू उड़ती है, जब हर दिन खेल का नाम और रात - तारे गिनती थी। नानी के घर की देहरी पर शाम के साए गहरे थे, जहाँ हर कोने में दबे पुराने किस्सो के बसेरे थे। आँगन पर बैठ, हम सब भरपूर बतियाते थे, कूलर पंखे की हवा खाते दिन में सो जाते थे। गिल्ली-डंडा, छुपन-छुपाई, गलियों में गूंजता शोर था, ठंडी चुस्की में छुपा वो दोपहर का अलसाया जोर था। कभी कुल्फ़ी वाला घंटी बजाता, तो मन ललचाता था, हर रंग के गोले में जैसे इक नया स्वाद आ जाता था। फिर जब ढलती थी शाम, खेल कर लौट आते थे, छत पर बिछती थी चटाई, सब साथ साथ सोते थे। दादी की कहानियाँ सुनकर, ख्यालों में खों जाते थे, और बचपन की वो नींद, जो सुकून से सो जाते थे। ये गर्मियों की शामें, सिर्फ़ एक मौसम नहीं है, ...