पता नहीं क्यों,
अब तेरे साथ बात,
वो बात नहीं होती।
होती थी जो शाम,
वो शाम नहीं होती।
वो छोटी-मोटी मजाक,
वो थोड़ी-सी छेड़छाड़।
होती थी जो खास,
वो मुलाकात नहीं होती।
जब चोट लगती थी मुझे,
तो जान जाती थी तेरी,
होती थी जो मेरी फिक्र,
वो फिक्र अब नहीं होती।
अब तेरी मेरी मंजिल,
वो मंजिल नहीं होती।
होती थी जो राह एक,
वो भी अब एक नहीं होती।
कहाँ क्या बदल गया,
जो सब कुछ बदल गया।
क्यूँ मेरे आने की खुशी,
वो बहार अब नहीं होती।
पता नहीं क्यों...
Gjab
ReplyDeleteThank you 😊
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