आँखे बंद करने पर एहसास तुम्हारा होता है,
धूप में आगे चलने पर साया तुम्हारा दिखता है।
क्या ये मेरी कल्पना है... या मेरा पागलपन?
क्या ये मेरी कल्पना है... या मेरा पागलपन?
बारिश न हो फिर भी भीगा सा महसूस करता हूँ,
तेरे चेहरे के नूर को हर तरफ़ में देखा करता हूँ।
क्या ये मेरी कल्पना है... या मेरा पागलपन?
क्या ये मेरी कल्पना है... या मेरा पागलपन?
अकेले बैठा-बैठा खुद से बाते करता हूँ,
ख्यालों में तेरे अक्सर मैं खोया रहता हूँ।
ख्यालों में तेरे अक्सर मैं खोया रहता हूँ।
हर चेहरे में सिर्फ़ तू ही नज़र आती है,
हर रास्ते की मंजिल तू ही मुझे लगती है।
क्या ये मेरी कल्पना है... या मेरा पागलपन?
क्या ये मेरी कल्पना है... या मेरा पागलपन?
अकेले सफर में साथ तेरा लगता है,
दिल मेरा आजकल ज़रा तेज धड़कता है।
साँसे मेरी न जाने क्यों कभी-कभी थम सी जाती है,
कानों में मेरे तेरी वो मीठी आवाज़ सुनाई देती है।
क्या ये मेरी कल्पना है... या मेरा पागलपन?
अगर ये कल्पना है तो इसे कल्पना ही रहने दो,
तुम न सही तुम्हारी यादों को ही रहने दो।
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