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My Thought | T.G. Futuristic | Sudhir Chouhan |

It was just a kind heart promise...
          A promise, which I made with my love to meet her.😍
At same time, same place & on the same day of next year...
          But it was
the time, the time which never come back.
And that happened to me & changed my life forever...
          I failed to make it & lost what I had, I lost everything with that.😭
I did not have any reason to live, but then I realized...
          This is life & we have to face it.
I decided to live with what I had...
          But again I missed something.🙁
Then I realized that without her, I would never be happy again...😢
          I went to her & saw her smiling.
She was happy with her family, her own family...
          A family which never made her cry, A husband who never lied (like me).
I saw her face & returned on my way...
          I finally smiled after a long time.😊
That is the LOVE...
          But I don't know if I was a Lover.                  
                                                                                  
                                                                     -T.G. Futuristic












Thank you Satyam Jain and Manish Goyal. I appreciate the time you spent on it. I always welcome bright ideas from interested people like you and hope that you continue to share these ideas with me.

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मैं वहीं पर खड़ा तुमको मिल जाऊँगा। डा. विष्णु सक्सेना।

मैं वहीं पर खड़ा तुमको मिल जाऊँगा जिस जगह जाओगे तुम मुझे छोड़ कर। अश्क पी लूँगा और ग़म उठा लूँगा मैं सारी यादों को सो जाऊंगा ओढ़ कर ।। जब भी बारिश की बूंदें भिगोयें तुम्हें सोच लेना की मैं रो रहा हूँ कहीं। जब भी हो जाओ बेचैन ये मानना खोल कर आँख में सो रहा हूँ कहीं। टूट कर कोई केसे बिखरता यहाँ देख लेना कोई आइना तोड़ कर। मैं वहीं पर खड़ा तुमको....... रास्ते मे कोई तुमको पत्थर मिले पूछना कैसे जिन्दा रहे आज तक। वो कहेगा ज़माने ने दी ठोकरें जाने कितने ही ताने सहे आज तक। भूल पाता नहीं उम्रभर दर्द जब कोई जाता है अपनो से मुंह मोड़ कर। मैं वहीं पर खड़ा तुमको...... मैं तो जब जब नदी के किनारे गया मेरा लहरों ने तन तर बतर कर दिया। पार हो जाऊँगा पूरी उम्मीद थी उठती लहरों ने पर मन में डर भर दिया। रेत पर बेठ कर जो बनाया था घर आ गया हूँ उसे आज फिर तोड़ कर। मैं वहीं पर खड़ा तुमको....... ~ डा. विष्णु सक्सेना ।

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