ध्यान दें ~ यह कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है , इस कहानी में उपयोग किए गए नाम , जगह सभी का वास्तविकता से कोई संबंध नही हैं। 😜 CHAPTER-1 । प्रताप नगर की मकरसंक्रांति । CHAPTER-2 प्रताप नगर की महाशिवरात्रि। मकर संक्रांति का दिन तो हो गया था , पर जो होना था वो नही हुआ। शुभम पतंग काटने के चक्कर खुद की ही कटवा बैठा था , पतंग। अगले ही दिन , पिछले दिन का गुस्सा लेकर , शुभम फिर शाम को 4 बजे पतंग लेकर घर की छत पर पहुच गया , सोचा आज तो उसकी पतंग काट ही दूंगा। लेकिन किस्मत इतनी अच्छी कहा होती है , शुभम तो पहुँच गया छत पर लेकिन उनके घर की छत पर कोई भी नही था। न तो शिवांगनी थी और न ही उसके पापा थे। शुभम अकेला ही पतंग उड़ा रहा था , और जो कुछ पतंग दिख रही थी उन्हें काटने की कोशिश में लगा था। करीब 2 घंटे तक वो पतंग उड़ाता रहा … फिर जिस घड़ी का था इंतेज़ार , वो घड़ी भी आयी , छत पर उनके थे सूखे कपड़े , और उसे लेने उसकी चाहत ही ...