किताबो का बोझ बचपन , जवानी खा गया , कुछ करके दिखाना है , जल्द समझ में आ गया। जागते - जागते नींद से नाता टूट गया , बस 5 मिनट और सो लू , ये बहाना भी मुझसे रूठ गया। नींद अच्छी है पर आँखों में नही ढलती , कामयाबी सस्ती है , पर बाजार में नही बिकती। रोज शाम मेरा दोस्त मेरे घर के बाहर आता , रवि रवि चिल्लाकर , जोर से Horn बजाता। मेरे मन का लालची लड़का उसके साथ जाना चाहता , किताबो का खौफ रह-रहकर उसे सताता। दोस्त हारा , खौफ जीता सब कुछ बदल गया था , कामयाबी का मुश्किल रस्ता , क्या वही से शुरू हुआ था ? अब मेरे दोस्त को देखकर वो मुस्कान नही खिलती , कामयाबी सस्ती है , पर बाजार में नही बिकती। मस्ती करना , घूमना फिरना , इधर-उधर की बाते , सपने थे सुहाने सारे , किताबे थी दिन और राते। घर की गरीबी ने लक्ष्य को और स्पष्ट दिखलाया , Crush की आँखों से ज्यादा , भविष्य मुझे उझलाया। मन मसोस कर जब मैंने इन सबको पीछे छोड़ा , तब जाकर कामयाबी ने थोड़ा सा रिश्त...
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