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मुझे आज भी यकीन नहीं होता...
कि कैसे कोई जाने किस पल,
किसी का दीवाना बन जाता है।
भूलकर असली दुनिया सारी,
अलग ही दुनिया में खो जाता है।
कि कैसे कोई कल का अनजान,
आज किसी की जान हो जाता है।
खुद की जान से भी बढ़कर,
उस जान से प्यार हो जाता है।
मुझे आज भी यकीन नहीं होता...
कि कैसे कोई महफ़िल में भी,
सब में अकेला कर जाता है।
सब कुछ पास होते हुए भी,
कमी का अहसास हो जाता है।
कि कैसे कोई एक उसका,
सब कुछ उसका बन जाता है।
अपनो से भी रिश्ता सिर्फ वो,
उस एक के लिए तोड़ जाता है।
मुझे आज भी यकीन नहीं होता...
कि कैसे कोई जीवन अपना,
सिर्फ उस एक नाम कर जाता है।
एक ही तो जीवन है, और
उसे भी वो बर्बाद कर जाता है।
कि कैसे कोई प्यार के घाट यूँ,
बंद आंखों से उतर जाता है।
न वो उसमें डूब पाता है,
न उभर कर कभी वापस आता है।
मुझे आज भी यकीन नहीं होता...
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