क्यूँ मान लूँ मैं। हमारे दरमियाँ कभी , कि कुछ था ही नही , हमने एक दूसरे को , कि कभी चाहा ही नही। तुम भी वाक़िफ़ हो , मैं भी वाक़िफ़ हूँ , ये रिश्ता सच है जिसे , कि तू अब मानता ही नही। प्यार तो था और है भी , मुझे तुमसे , तुम्हें मुझसे। तो क्यूँ झूठ बोलूँ मैं , कि हम अब कुछ भी नही। जो तुम्हें पसंद नही , वो बात करेंगें भी नही। पर झुठला दूँ प्यार को , ऐसा तो हम करेंगें ही नही। टूट कर चाहा हैं हमने , दोनो ही बिखरने लगे है। तो क्यूँ मान लूँ मैं , कि हम अब साथ ही नही। तुम चाहे कह दो हमे , कि तुम अब कुछ भी नही। तो क्यूँ मान लूँ मैं , कि जो कहा वो झूठ ही नही। ~ लोकेश शर्मा।