आज कुछ लिखने की कोशिश की है मैंने, अपनी हालत शब्दों में सरेआम की है मैंने। कुछ अपने आप से, कुछ कलम कागज़ से, कुछ आप से कहने की कोशिश की है मैंने। जो कभी किसी से बयां नहीं कर सका वो, लिख कर हालात खुल कर बात की है मैंने। अंदर ही अंदर बंद था किसी कैद में कब से, उस बंदी दिल की बेड़ियां आज़ाद की है मैंने। सुन सको तो सुनना, समझ सको तो समझना, यहां बहुत कुछ कहने की कोशिश की है मैंने। ~लोकेश शर्मा।
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