अब क्या बताऊँ मैं, कि क्या हाल हैं? सुकून नहीं हैं, सुकून की तलाश हैं, दिन व्यस्त हैं, मेरी रात परेशान हैं। मिलने को बाकी तो सब मिलता हैं , यहाँ सबकी अपनी अपनी दूकान हैं। अब क्या बताऊँ मैं, कि क्या हाल हैं? बाहर से हँसता हैं, अंदर बवाल हैं, कोई पूछे तो बोलता हैं, सब कमाल हैं। हर रोज अपने आप से लड़ता हैं, ये किरदार मेरा खुद एक सवाल हैं। अब क्या बताऊँ मैं, कि क्या हाल हैं? जरुरत को रोटी कपड़ा मकान हैं, बावजूद इसके, मेरा मन अशांत हैं। सख्त चेहरा हैं और झूठी मुस्कान हैं, ये चलता फिरता तन अब बेजान हैं। अब क्या बताऊँ मैं, कि क्या हाल हैं? कल की चोट अभी गई भी नहीं हैं, कि आज फिर मेरा जंग का मैदान हैं। जिनके होने से मेरा जीवन बेहाल हैं, वो भी पूछते हैं, और कवि क्या हाल हैं? अब क्या बताऊँ मैं, कि क्या हाल हैं? ~लोकेश शर्मा।
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