° मुझे आज भी यकीन नहीं होता...     कि कैसे कोई जाने किस पल ,   किसी का दीवाना बन जाता है।   भूलकर असली दुनिया सारी ,   अलग ही दुनिया में खो जाता है।     कि कैसे कोई कल का अनजान ,   आज किसी की जान हो जाता है।   खुद की जान से भी बढ़कर ,   उस जान से प्यार हो जाता है।     मुझे आज भी यकीन नहीं होता...     कि कैसे कोई महफ़िल में भी ,   सब में अकेला कर जाता है।   सब कुछ पास होते हुए भी ,   कमी का अहसास हो जाता है।     कि कैसे कोई एक उसका ,   सब कुछ उसका बन जाता है।   अपनो से भी रिश्ता सिर्फ वो ,   उस एक के लिए तोड़ जाता है।     मुझे आज भी यकीन नहीं होता...     कि कैसे कोई जीवन अपना ,   सिर्फ उस एक नाम कर जाता है।   एक ही तो जीवन है , और   उसे भी वो बर्बाद कर जाता है।     कि कैसे कोई प्यार के घाट यूँ ,   बंद आंखों से उतर जाता है।   न वो उसमें डूब पाता है ,   न उभर कर कभी वापस आता है।     मुझे आज भी यकीन नहीं होता...     ~ लोकेश शर्मा।    
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